– बसन्त महर्जन
विराट गगन भी
छोटी हो गई
मेरे दिल के आगे
दिल मेरा इतना विशाल है
कि किसी जगह मे वैठाने के लिए
मजबुरन उन्हे सिकोडना पडेगा ।
मेरी उपस्थिति ही
किसी के लिए अंगारे बन गई तो
मै खुद भी क्या कर सकता हूँ ?
मेरे इस विवशताको
कैसे कह सकता हूँ कि
यह मेरे कमजोरी नहीं ।
सिकोडी हुई मेरे दिल
वस्तुतः खुद के ही मौलिक नहीं
विराट गगन भी छोटी हो गई
मेरे दिल के आगे ।